नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका (PIL) को दाखिल किया गया, जिसमें राज्य के पुलिसकर्मियों में व्याप्त मानसिक तनाव और उससे उत्पन्न आत्महत्याओं और स्वैच्छिक सेवानिवृत्तियों को लेकर गंभीर चिंताएं उठाई गई हैं। इस याचिका को अजय नारायण शर्मा द्वारा दाखिल किया गया, जिसे प्रमुख अधिवक्ता अभिषेक बहुगुणा ने उच्च न्यायालय की दो जजों की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया। इस पीठ का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश रीतु बहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने किया।
पीठ ने राज्य सरकार को इस मामले पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए, उत्तराखंड पुलिस विभाग में कार्यरत कर्मचारियों के मानसिक तनाव और आत्महत्याओं के कारणों पर विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में विशेष रूप से पुलिस विभाग की कठिन परिस्थितियों, लंबे कार्य-घंटों, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और उनके वेतन-ढांचे में बदलावों के कारण उत्पन्न तनाव के कारणों पर प्रकाश डाला गया है।
अजय नारायण शर्मा द्वारा दायर इस याचिका में पुलिसकर्मियों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग की गई है। यह भी उल्लेख किया गया है कि हाल के वर्षों में राज्य में कई पुलिसकर्मियों ने या तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है या आत्महत्या की है, जिससे यह विषय सार्वजनिक सुरक्षा और राज्य की कानून व्यवस्था के लिए चिंता का कारण बन गया है।
अधिवक्ता अभिषेक बहुगुणा ने अदालत के समक्ष यह दलील दी कि पुलिसकर्मियों का मानसिक स्वास्थ्य न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि यह सीधे तौर पर राज्य की कानून व्यवस्था पर भी असर डालता है। इस PIL का उद्देश्य उत्तराखंड पुलिस विभाग में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना, कार्य-घंटों में सुधार, और तनाव प्रबंधन के उपायों को लागू करना है, ताकि पुलिसकर्मी तनाव मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।
इस महत्वपूर्ण याचिका के संदर्भ में राज्य सरकार को 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। याचिकाकर्ता और उनके अधिवक्ता ने यह आशा व्यक्त की है कि अदालत के आदेश से पुलिसकर्मियों के हित में सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे, जिससे राज्य की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और पुलिस विभाग का मनोबल ऊंचा होगा।