पूर्ण को जानकर पूर्ण हो जाना ही भक्ति है-निरंकारी राजपिता रमित जी

0
15

पुरोला 16 जून 2024- पुरोला में निरंकारी संत समागम निरंकारी राजपिता जी की छत्रछाया में हर्ष उल्लास के साथ संपन्न हुआ। जिसमें निरंकारी राजपिता जी ने अपने विचारों में फरमाया कि सतगुरु के ब्रह्मज्ञान से पूर्ण परमात्मा को जानकर जीवन को पूर्ण कर लेना ही मुक्ति है, यही भक्ति का सार भी है। जिस प्रकार एक बूंद का सागर में मिलना ही लक्ष्य होता है उसी प्रकार इस मनुष्य जीवन का लक्ष्य ईश्वर को जानकर भक्ति करना है।
इस शरीर में रहकर यह आत्मा खुद को शरीर मान लेती है। सतगुरु द्वारा ब्रह्मज्ञान की दृष्टि जब प्राप्त हो जाती है तो फिर ऊंच, नीच का फर्क समाप्त हो जाता है फिर कण-कण में यह ईश्वर ही नज़र आता है।
इंसान ने भगवान को ही अहंकार का कारण बना दिया है; कोई अपने भगवान को बड़ा बताता है तो कोई अपने धर्म को बड़ा बताता है, जबकि सतगुरु के ज्ञान से इस एक परमात्मा को जानने के बाद यह भाव समाप्त हो जाता है। जब इस एक का बोध हो जाता है तो जीवन की अज्ञानता और अंधकार दूर हो जाता है। यह मनुष्य जन्म बड़े भागों से प्राप्त हुआ है और इसका मूल मकसद ईश्वर को जान लेना है। एक ईश्वर प्रभु परमात्मा को एक मानकर भक्ति करने से ही जीवन से वैर के कारण समाप्त हो जाते हैं फिर जीवन से तनाव दुख कलह क्लेश समाप्त हो जाता है और सुकून की प्राप्ति होती है। एक को जान लेना एक को मान लेना और एक हो जाना; फिर यह जीवन भी सुंदर होगा यह धरती सुंदर होगी।
पुरोला भवन का उद्घाटन निरंकारी राजपिता जी ने किया और समागम के अंत में पुरोला के मुखी गोपाल सिंह चौहान एवं उत्तरकाशी संयोजक ओमप्रकाश जोशी ने निरंकारी राजपिता रमित जी एवं समस्त साध संगत का आभार व्यक्त किया एवं प्रशासन द्वारा किए गए सराहनीय सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद प्रेषित किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here