हरिद्वार,रमजान-उल-मुबारक माह का चांद शनिवार को देश के कई राज्यों में नजर आया. इसके बाद रविवार 3 अप्रैल को रमजान माह का पहला रोजा होगा. चांद की खबर मिलते ही एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया. मुस्लिम बहुल इलाकों में चहल-पहल बढ़ गई
मिली जानकारी अनुसार रमजान के पवित्र महीने में तीस दिन तक मुस्लिम समाज के लोग इबादत करते हैं। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मुस्लिम समुदाय के लोग कुछ खा-पी नहीं सकते हैं। इस दौरान वह पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं और सूर्यास्त के बाद ही वह रोजा खोलते हैं। साथ ही रमजान में मस्जिदों और घरों में में कुरान की तिलावत भी की जाती है। सभी लोगों के लिए रमजान में रोजा रखना जरुर माना जाता है। हालांकि कुछ मामलो में रोजा न रखने की छूट भी होती है।रमजान के पहले दस दिन रहमत के हैं तो दूसरे दस दिन मगफिरत (माफी) मांगने और अंतिम दस दिन दोजख से निजात पाने अर्थात अल्लाह को राजी करने का है, इसलिए अंतिम भाग की महत्ता बहुत ही अधिक बताई गई है।
इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई है. मुहम्मद साहब मक्के से हिजरत (प्रवासन) कर मदीना पहुंचने के एक साल के बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म आया. इस तरह से दूसरी हिजरी में रोजा रखने की परंपरा इस्लाम में शुरू हुई. हालांकि, दुनिया के तमाम धर्मों में रोजा रखने की अपनी परंपरा है. ईसाई, यहूदी और हिंदू समुदाय में अपने-अपने तरीके से रोजा रखा जाता है.