हरिद्वार, भूपतवाला,हरिपुरकलां, देहरादून में संस्कृत भारती द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीया गोष्ठी’ के शुभारंभ सत्र में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने वेद व्यास मंदिर में पूजा अर्चना कर प्रदेश में सुख शांति की कामना की।
मिली जानकारी अनुसार हरिद्वार के वेदव्यास मंदिर आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीया गोष्ठी में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाई जाए. उत्तराखंड के सभी सरकारी कार्यालय के नाम हिंदी के साथ संस्कृत में भी लिखने का काम तेजी से किया जा रहा है. उन्होंने इस भाषा को प्रारंभिक स्तर के लोगों के लिए सरल बनाए जाने की अपील भी की. उन्होंने कहा की संस्कृत भारती का यह प्रयास संस्कृत का पुनरुत्थान करने और भाषा के माध्यम से वैश्विक समुदायों को जोड़ने का कार्य निरंतर जारी रखे हुए हैं.
सीएम धामी ने कहा कि देववाणी संस्कृत उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा है. संस्कृत भाषा मनुष्य के संपूर्ण विकास की कुंजी है. मानव इतिहास के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद को भी संस्कृत में लिखा गया था. उसके बाद संस्कृत भाषा साहित्य के अन्य क्षेत्रों में भी वृहद स्तर पर अभिव्यक्ति का साधन बनी है. संस्कृत भाषा को आम बोलचाल की भाषा बनाने के लिए संस्कृत भारती की ओर से सराहनीय काम किए जा रहे हैं. उम्मीद है कि यह प्रयास भविष्य में जन आंदोलन बनकर उभरेगा. एक दिन संस्कृत आमजन की भाषा बनेगी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि सनातन संस्कृति के इतिहास और वैदिक काल के समस्त वेद, पुराणों और शास्त्रों की रचना संस्कृत में की गई है। संस्कृत भाषा अनादि और अनंत है। उन्होंने कहा साहित्य से लेकर विज्ञान तक, धर्म से लेकर आध्यात्म तक और खगोलशास्त्र से लेकर शल्य चिकित्सा तक, हर क्षेत्र से जुड़े ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। हजारों साल पहले भारतीयों ने उत्कृष्ट ज्ञान के चलते पंचांग, ग्रहों और नक्षत्रों की जानकारी जुटा ली थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अन्य भाषाओं की तुलना में संस्कृत के स्वर और व्यंजनो की संख्या अधिक है। संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसके शब्दों के आगे – पीछे हो जाने से वाक्य के भाव में कोई अन्तर नहीं आता। उन्होंने कहा संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार भी बहुत वृहद है। उन्होंने कहा विष्णु सहस्रनाम में भगवान विष्णु के 1000 नाम लिखे गए हैं, ऐसे ही ललिता सहस्रनाम और शिव सहस्रनाम भी है। यह सिर्फ संस्कृत में ही संभव है कि किसी नाम के एक हजार पर्यायवाची हो।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अनेकों यूरोपीय भाषाओं के अनेकों शब्द संस्कृत से ही प्रभावित दिखाई देते हैं। संस्कृत अत्यंत ही समृद्ध, सरल और व्यवहारिक भाषा है। उन्होंने कहा कई सदियों तक विदेशी आक्रांताओं का शासन होने के कारण हम अभी संस्कृत भाषा से दूर होते चले गए। हमें एकजुट होकर अपनी मूलभाषा देववाणी संस्कृत को पुनः मुख्यधारा में लाने का प्रयास करना है। उन्होंने कहा निश्चित रूप यह कार्यक्रम इस दिशा में एक सकारात्मक प्रभाव छोड़ेगा। उन्होंने कहा संस्कृत भारती संस्कृत को पुनः आम बोलचाल की भाषा बनाने के लिए भारत के साथ ही कई अन्य देशों में संस्कृत के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहा है।
इस अवसर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज, प्रो. गोपबन्धु, दिनेश कामत, के. निवास प्रभु, मती जानकी त्रिपाठी, एवं अन्य लोग मौजूद रहे।