हरिद्वार,हरेला पर्व पर फलदार व कृषि उपयोगी पौधा रोपण की परंपरा है। हरेला केवल अच्छी फसल उत्पादन ही नहीं, बल्कि ऋतुओं के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कहीं-कहीं हर-काली के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है।हरेला पर्व के साथ ही सावन का महीना शुरू हो जाता है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले घर के मंदिर में कई प्रकार का अनाज टोकरी में बोया जाता है और माना जाता है की टोकरी में अगर भरभरा कर अनाज उगा है तो इस बार की फसल अच्छी होगी। हरेला पर्व के दिन मंदिर की टोकरी में बोया गया अनाज काटने से पहले कई पकवान बनाकर देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है जिसके बाद पूजा की जाती है। घर-परिवार के सदस्यों को हरेला (अंकुरित अनाज) शिरोधरण कराया जाता है।
मिली जानकारी अनुसार हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में. हरेला का मतलब है हरियाली. उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है, तब चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है, उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है. यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है, जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. हरेला लोकपर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है, जिससे 9 दिन पहले मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है. कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं. इन पौधों को देवताओं को अर्पित किया जाता है. घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं.