उत्तराखंड, जोशीमठ मे नरसिंह मंदिर के पास जल धारा फूटी एक बार फिर शासन और प्रशासन की टेंशन बढ़ने लगी

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हरिद्वार, जोशीमठ लंबे समय से सुर्खियों में आ रहा है कही भूधसंव और जल धारा को लेकर हर कोई परेशान हो रहा है अभी तक किसी की समझ में नहीं आया कि आखिर यह माजरा क्या है वहीं इसका असर यहां के प्राचीन नरसिंह देव मंदिर में भी देखने को मिला है. मंदिर परिसर के सीढ़ियों और जमीन में कुछ दरारें और कई जगह टाइलें कुछ नीचे धंसी है वही आज फिर नरसिंह मंदिर के पास जल धारा फूटी है जिसके बाद ग्रामीण दहशत में दिखाई दे रहे हैं

मिलि जानकारी अनुसार जलधारा फूटने से एक बार फिर से सरकार और प्रशासन की टेंशन बढ़ने लगी है। अब तक जांच टीमें इस बात का भी पता नहीं लगा पाई हैं कि पानी कहां से आ रहा है। पानी के सैंपल की रिपोर्ट भी अब तक सार्वजनिक नहीं की जा सकी है 10 फरवरी को प्रधानमंत्री के सलाहकार तरुण कपूर की अध्यक्षता में हुई बैठक में एनडीएमए ने जोशीमठ को लेकर विज्ञानियों के सुझावों के आधार पर तैयार रिपोर्ट पर प्रस्तुतीकरण दिया था। तब ये तय हुआ था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुमोदन प्राप्त होने पर रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी जाएगी। बाद में यह रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी गई थी।

जोशीमठ के गंधमादन पर्वत पर भगवान नृसिंह का मंदिर है. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है. मंदिर में उनकी प्रतिमा 10 इंच की है और वह एक कमल पर विराजमान हैं. इनके दर्शनों से दुख, दर्द, शत्रु बाधा का नाश होता है. मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की बाईं भुजा बीतते वक्त के साथ घिस रही है. मान्यताओं के अनुसार, भुजा के घिसने की गति को संसार में निहित पाप से भी जोड़ा जाता है.

चमोली के जोशीमठ क्षेत्र में भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में विराजमान हैं. नृसिंह अर्थात सिर शेर का और धड़ मनुष्य का. यह स्वरूप भगवान विष्णु का चौथा अवतार है. इसी मंदिर में भगवान नृसिंह के साथ उद्धव और कुबेर के विग्रह भी हैं. कथित तौर पर बारह हजार वर्षों से भी पुराने इस नृसिंह मंदिर की स्थापना के संदर्भ में कई मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर मूर्ति स्वयंभू यानि स्वयं प्रकट हुई थी, जिसे बाद में स्थापित किया गया था.

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