हरिद्वार, देहरादून का एक गांव अब केवल इतिहास के पन्नों में ही सुना और देखा जाएगा। क्योंकि इस गांव ने सोमवार शाम को हमेशा के लिए जल समाधि ले ली है। यह गांव हैं लोहारी गांव जहां कभी 71 से ज्यादा परिवार रहा करते थे। अब यह गांव हमेशा के लिए बांध की झील में जलमग्न हो गया है।व्यासी जल विद्युत परियोजना
मिली जानकारी अनुसार बुधवार को बांध परियोजना की साठ-साठ मेगावाट की दोनों टरवाइनों की बिजली उत्पादन के लिए टेस्टिंग की जाएगी। मशीनों की टेस्टिंग सफल होने के बाद पावर ग्रिड से सिंक्रोनाइजेशन की प्रक्रिया शुरु की जायेगी। परियोजना के अधिशासी निदेशक राजीव अग्रवाल ने बताया कि झील के जल स्तर को फिलहाल 630 आरएल मीटर पर स्थिर रखा जायेगा। जरुरत पडने पर 631 आरएल मीटर तक पानी भरा जायेगा।
व्यासी जल विद्युत परियोजना की जद में आए लोहारी गांव में सोमवार दोपहर बाद घर एक एक कर बांध की झील में समाने लगे। भावुक और विवश ग्रामीण नम आंखों से अपने पुरखों के बनाए घरों को झील में डूबते हुए देखते रहे। मंगलवार सुबह तक गांव सिर्फ इतिहास में रह जाएगा।
झील की गहराइयों में बांध प्रभावितों की सुनहरी यादें, संस्कृति और खेत-खलिहान गुम हो गए। ऊंचे स्थानों पर बैठे ग्रामीण दिनभर भीगी आंखों से अपने पैतृक गांव को जल समाधि लेते देखते रहे। ग्रामीणों की मांग थी कि उन्हें आखिरी बिस्सू पर्व पैतृक गांव में ही मनाने को कुछ वक्त दिया जाए, लेकिन सभी को 48 घंटे के नोटिस पर गांव खाली करना पड़ा।
दरअसल 1972 में व्यासी जल विद्युत परियोजना की आधारशिला रखी गई थी। जिसके बाद यह पूरा इलाका बांध परियोजना के डूब क्षेत्र में आ गया था। सरकार ने उस समय गांव वालों को विस्थापित करने और मुआवजा भी दिया। ऐसे में व्यासी जल विद्युत परियोजना को सबसे पहले जेपी कंपनी ने बनाया लेकिन साल 1990 में एक पुल के टूटने के कारण यह डैम फिर से अधर में लटक गया। जिसके बाद NTPC कंपनी ने इस बांध को बनाने का ठेका लिया और लंबी जद्दोजहद के बाद यह डैम फिर से अधर में लटका रहा। वहीं, साल 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार आने के बाद यह डैम उत्तराखंड जल विद्युत निगम को दिया गया। हालांकि, इस परियोजना का काम लगभग पूरा काम हो चुका है और जल्द ही उत्पादन भी शुरू हो जाएगा। यही वजह है कि अप्रैल 2022 में प्रशासन ने लोहारी गांव के लोगों को नोटिस दिया कि यह गांव कब खाली कर दिया जाए।