विषय: हरिद्वार मेडिकल कॉलेज का निजीकरण – राज्य हित के विरुद्ध एक कदम,हेमा भंडारी राष्ट्रीय महासचिव जनाधिकार मोर्चा

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“हरिद्वार के राजकीय मेडिकल कॉलेज को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर सौंपने का उत्तराखंड सरकार का निर्णय राज्य की जनता के हितों के साथ विश्वासघात है। जनाधिकार मोर्चा इस निर्णय की घोर निंदा करता है और इसे राज्य के स्वास्थ्य ढांचे के निजीकरण की दिशा में खतरनाक कदम मानता है।

सरकार का यह निर्णय राज्य के उन गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के भविष्य पर सीधा आघात है जो सरकारी मेडिकल कॉलेज में गुणवत्तापूर्ण और सुलभ चिकित्सा शिक्षा की आशा रखते थे। निजीकरण से शिक्षा महंगी हो जाएगी, और स्वास्थ्य सेवाओं का उद्देश्य लाभ कमाना हो जाएगा, न कि जनसेवा करना।

लीगल और सोशल फैक्टर्स का आंकलन:

कानूनी चिंताएँ:

उत्तराखंड अधिप्राप्ति नियमावली के तहत इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। वित्तीय बिड में “सबसे अधिक मूल्य वाली संस्था” को चयन करना शिक्षा और सेवा की गुणवत्ता से समझौता करने का संकेत देता है।
यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ के उल्लंघन की ओर इशारा करता है।
सामाजिक प्रभाव:

हरिद्वार जैसे धार्मिक और ऐतिहासिक शहर में सरकारी मेडिकल कॉलेज एक सांकेतिक पहचान थी। इसे निजी हाथों में सौंपने से स्थानीय युवाओं और गरीब तबकों को चिकित्सा शिक्षा में अवसर सीमित हो सकते हैं।
निजीकरण से चिकित्सा शिक्षा और सेवाओं की लागत में वृद्धि होगी, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का इस पर से भरोसा टूट सकता है।
जनाधिकार मोर्चा मांग करता है कि इस निर्णय को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए और मेडिकल कॉलेज को पूर्णतः राजकीय नियंत्रण में संचालित किया जाए। यदि सरकार ने जनभावनाओं को नज़रअंदाज कर इस निर्णय को लागू किया, तो हम जनसमर्थन के साथ आंदोलन करेंगे और इसे न्यायालय में चुनौती देंगे।

हम उत्तराखंड की जनता से आह्वान करते हैं कि वे इस मुद्दे पर एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करें। यह न केवल हरिद्वार बल्कि पूरे राज्य के भविष्य का सवाल है।

हेमा भंडारी
राष्ट्रीय महासचिव
जनाधिकार मोर्चा

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