हरिद्वार, उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में लाट साहब के जुलूस के दौरान कुछ उपद्रव्यों ने रथ पर बोतले फेकना शुरू कर दिया जिसके बाद हालात बेकाबू होता देख पुलिस ने जमकर लाठियां बरसाई और भीड़ को तीतर भीतर किया
शुक्रवार को बड़े लाट साहब का जुलूस कड़ी सुरक्षा में निकाला गया। सदर बाजार थाना के नजदीक पंखी चौराहा से होते हुए जुलूस घंटाघर की तरफ बढ़ा। घंटाघर पर काफी भीड़ एकत्रित थी। बताते है कि आरएएफ के आते ही लोगों ने जूते-चप्पल आदि फेंकने शुरू कर दिए।
इसे लेकर सड़क पर एकत्रित भीड़ को खदेड़ने के लिए आरएएफ ने लाठीचार्ज कर दिया। सुरक्षाकर्मियों ने घंटाघर पर खड़े हुरियारों को लाठी से खदेड़कर जुलूस को निकलवाया। इसके बाद कड़ी सुरक्षा में जुलूस को आगे की तरफ रवाना किया गया।
कोतवाली में लाट साहब को सलामी दी। इसके बाद जिस मार्ग से जुलूस निकला लोगों ने जूते, चप्पल की बौछार कर दी। चारखंभा, रोशनगंज, अंटा चौराहा, सदर बाजार, टाउनहाल, सदर बाजार, बहादुरगंज, घंटाघर होते हुए जुलूस पटी गली में पहुंचा जहां समापन हो गया। कंट्रोल रूम से से प्रशासन व पुलिस के आलाधिकारी नजर बनाए रहे।
लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर। जिनके विरोध में हर साल होली में ये जुलूस निकाला जाता है। पहले एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है। उसका चेहरा ढक कर उसे जूते की माला पहनाकर बैलगाड़ी पर बैठाकर तय मार्ग पर घुमाया जाता है। इस दौरान लाट साहब पर अबीर-गुलाल के साथ जूते-चप्पल भी फेंके जाते हैं।शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकाले जाते हैं। जिसको छोटे और बड़े लाट साहब के नाम से जाना जाता है। कमेटी की तरफ से लाट साहब बनने वाले को 21 हजार रुपए का इनाम, पांच जोड़ी कपड़े और जूते चप्पल दी जाती है। चौक कोतवाली उनको सलामी देते हैं साथ ही नजराने के रूप में शराब की बोतल भी देते हैं।
कमेटी के आयोजक जुलूस को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। पुलिस प्रशासन जुलूस को संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू कर देता है। इतिहासकार की मानने तो ये परम्परा 300 साल पुरानी हैं। पहले इसका नाम नवाब साहब था लेकिन आपसी सौहार्द न बिगड़े इसके लिए जुलूस का नाम लाट साहब कर दिया गया।