आम आदमी प्राइवेट सेक्टर कौन सुनेगा इस पर भी ध्यान दे सरकार

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भारत मे हर आदमी नेता है हर कोई अपने हक की बात करता है और सरकार उनकी बात मान भी लेती है बस एक आदमी है जो किसी से ये भी नही कहता की सरकार हमारी भी सैलरी बढ़ा दो और ना ही सरकार सुनती है कौन हैं वो

किसानों को देखो वह अपनी नेता गिरी कर रहे हैं जिनको 8 महीने हो गए हैं बॉर्डर पर पड़े हुए हैं लेकिन सरकार उनकी सुनती नहीं लेकिन वह भी हट कर बैठे हैं कि अपनी सारी मांगे मनवा कर छोड़ेंगे

कहीं जातिवाद को लेकर संगठन बनाए हुए हैं सभी अपनी अपनी मांगों को लेकर सरकार के आगे बात रखते हैं लेकिन एक आदमी ऐसा है जो किसी को भी अपनी मांग के लिए नहीं कहता वह है सिर्फ प्राइवेट सेक्टर का एक आदमी जिसकी सैलरी 10 से 12000 या फिर ₹30000 तक रखी गई हुई है जो सारे अपने बॉस से लेकर और घर तक के ताने सुनता है लेकिन किसी को चू तक नहीं करता क्या सरकार को उनके बारे में नहीं सोचना चाहिए फैक्ट्रियों में देखो जाकर 8 से 12 घंटे तक कर्मचारी काम करते हैं तब जाकर उनकी सैलरी 10,000 होती है सरकार क्यों नहीं देखती लेकिन कोई संगठन उनके बारे में नहीं सोचता क्यों

छोटे तबके का व्यापारी जो बैंक से कर्ज उठाकर व्यापार कर रहा है लेकिन 2 साल से कारोनो की मार से जूझ रहा है बैंक से लोन लेने के बाद किस्त बढ़ जाती हैं सरकारी बैंक लोन देता नहीं प्राइवेट के ब्याज कई गुना तक है तभी लोग वो लोन लेते है लेकिन काम कम हो या ज्यादा किस्त देता है और एक दिन जिन्दगी भी किस्तो मे जीता है प्राइवेट सेक्टर के लिए कोई नहीं सोचता आखिर क्यों

सेल्समैन जो कंपनियों के लिए दिन रात एक करता है यहां तक की सड़क पर चलते चलते उसके जूते भी फट जाते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती सैलरी 10 से ₹15000 तक मिलती है ऐसी स्थिति आ गई है कि उसको अपना घर चलाना भी मुश्किल हो जाता है और कभी-कभी तो उनके सीनियर पर्सन उनकी सैलरी तक मार लेते हैं लेकिन सरकार नहीं देखती और ना ही कोई संगठन उनके साथ खड़ा होता है और परेशान होकर वो सड़क के हो जाते है कैसे चले घर

सिर्फ और सिर्फ सरकार बड़े लोगों की सुनती है गरीबों का कोई नहीं होता हर सरकारी आदमी को इतना मिलता है उसके बाद भी बोलते है सरकार हम को ये भी दो बो भी दो

आज बिजली विभाग के कर्मचारियों ने हड़ताल कर रखी है जहां पर उत्तराखंड में बिजली की भारी कटौती दिखाई दे रही है लोग गर्मी से तड़प रहे हैं मौसम ठंडा होने की वजह से कुछ राहत है सोचो अगर ऐसे में गर्मी बढ़ जाए तो आम जनमानस का क्या होगा लेकिन सरकारी आदमियों को तो अपनी मांगे मनमानी हैं लड़ाई सरकार की और सरकारी कर्मचारियों की नुकसान होता है हर हाल में गरीब तबके का जो मेहनत मजदूरी करने के बाद अपने परिवार का पालन पोषण करता है वह यह नहीं देखता कि उसको आज का खाने का पैसा मिलेगा या नहीं देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं सरकार उनकी तरफ भी देखो

मेरे विचार है क्या सही है कमेन्ट करे और बताए

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