नव संवत्सर के महत्व – नव संवत्सर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है इसी को सनातन धर्म के अनुसार नव वर्ष माना जाता है।

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नववर्ष पर विशेष प्रकाशनार्थ – नव संवत्सर के महत्व – नव संवत्सर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है इसी को सनातन धर्म के अनुसार नव वर्ष माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन व्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण शुरू किया था।इसी दिन विष्णु भगवान के दशावतार में से एक मत्स्य अवतार हुआ था। जिस समय प्रलय हो चुका था उस समय चारों तरफ जल ही जल था।उस समय व्रह्मा जी के द्वारा लिखित धर्म ग्रंथों की सुरक्षा के लिए एक नाव पर धर्म ग्रंथों को रखा गया और भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार धारण करके उस नाव को लेकर निरन्तर जल में विहार करते हुए अन्त में मनु महाराज जी को प्रदान किये। इसी दिन श्री राम जी का राज्याभिषेक हुआ था और इसी दिन युधिष्ठिर जी का राज्याभिषेक हुआ था। समय अन्तराल में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य हुए उन्होंने शकों पर विजय प्राप्त करके पुनः राज्य स्थापना किया जिसके कारण तब से विक्रम संवत भी एक नाम पड़ा।हमारा नव वर्ष अति उत्तम है। वृक्षों में नये नये पत्ते आते हैं। चारों तरफ हरियाली हरियाली छाई होती है ‌किसानों के घरों में नये नये अनाजों का भण्डार होता है।नव वर्ष की शुरुआत मातृशक्ति की आराधना से प्रारम्भ होती है। नवमी के दिन श्री राम जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते हैं और पक्ष के अन्तिम दिन श्री हनुमान जन्मोत्सव भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। ज्योतिष में सभी ग्रह, नक्षत्र, ऋतु, मास की काल गणना की शुरुआत होती है। प्रतिपदा को मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में चंद्रमा प्रकट होकर पन्द्रह दिन तक प्रतिदिन एक कला बढ़ता हुआ पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्ण होने के कारण इस महीने का नाम भी चैत्र रखा गया।

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