मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि मनश्चतुष्टय के विकास एवं परिष्कार हेतु भाषा, गणित, संज्ञान, दर्शन की शिक्षा सभी नागरिकों को समान रूप से प्रदान करी जाए- अंकुर जी
अब तक की सरकारें मनुष्यों के लिए शिक्षा का महत्त्व भी नहीं समझ पाई हैं- चन्द्रसेन शर्मा
आगरा। देश में आजादी के ७५ वर्ष पश्चात् भी ७० प्रतिशत से भी अधिक नागरिक अशिक्षित, अल्पशिक्षित या कुशिक्षित हैं। अधिकांश लोग तो निरक्षर ही हैं। न्याय ही किसी राष्ट्र में आजादी का लक्षण है, किन्तु आज तक न्यायपूर्वक समानरूप से प्रत्येक नागरिक को शिक्षा सुलभ नहीं कराई गयी। इससे सरकार की न्यायशीलता पर ही प्रश्नवाचक चिह्न लग रहा है।
न्यायधर्मसभा के कुल 111 न्याय प्रस्ताव हैं जिन्हें केंद्रसरकार एवं राज्य सरकारों को विगत कई वर्षों से भेजा हुआ है। कुछ बिन्दुओं को क्रियान्वित भी किया गया है।
111 न्याय प्रस्तावों के जनक परम पूज्य श्री गुरूजी अरविंद अंकुर जी का कहना है कि प्रत्येक नागरिक के लिए उसके समुचित हिताधिकारों की सुलभता को ही राष्ट्र की न्यायशील व्यवस्था का लक्षण माना जा सकता है। समान और उचित हिताधिकारों में शिक्षा, रोजगार, सुविधा एवं संरक्षण का समावेश सार्वजनिक रूप से किया जा सकता है। इन्हें ही चार जनाधिकार माना जा सकता है। शिक्षा ही इनमें प्रथम अधिकार है, जो जनता को न्यायपूर्वक बाल्यकाल में २५ वर्ष की आयु तक निःशुल्क, अनिवार्य एवं अबाध रूप से राजकोषीय बजट द्वारा सुलभ कराई जानी चाहिए।
शिक्षा की निःशुल्कता, अनिवार्यता एवं अबाधता को शिक्षा नीति में स्वीकार किए विना न्यायसंगत शिक्षाव्यवस्था प्रतिष्ठित नहीं हो सकती। साथ ही शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाने के लिए शिक्षा के साथ रोजगारसम्बन्धी कर्मों के कौशल के प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम भी संयुक्त होना चाहिए। इसके लिए २५ वर्ष की आयु तक प्रत्येक नागरिक का विद्यार्थीजीवन घोषित किया जाना चाहिए। इस अवधि में केवल शिक्षण-प्रशिक्षण सम्बन्धी कर्तव्य समस्त नागरिकों पर अनिवार्य होना चाहिए, ताकि कोई भी नागरिक सामाजिक या सरकारी कारणों से अशिक्षित न रहे।
कुल २५ वर्ष की आयु तक विद्यार्थीजीवन में प्रथम २० वर्ष की आयु तक लगातार शिक्षणपाठ्यक्रम एवं शेष ५ वर्ष की अवधि तक लगातार प्रशिक्षण पाठ्यक्रम लागू किया जाए। इस बीच किसी भी कारण से विद्यार्थी को विद्यालय से बहिष्कृत न किया जाए। शिक्षणपाठ्यक्रम में भाषा, गणित, संज्ञान, दर्शन इत्यादि चार विषयों के माध्यम से विद्यार्थियों के मानवीय अन्तःकरण चतुष्टय मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के परिष्कार हेतु क्रमशः उपरोक्त चार विषयों का पाठ्यक्रम अपनाया जाए। भाषा से मन, गणित से बुद्धि, संज्ञान से चित्त और दर्शन से अहंकार का परिष्कार संभव होता है। मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार को ही क्रमशः विचार, बोध, स्मृति एवं स्वाभिमान का केन्द्र माना जाता है।
प्रत्येक नागरिक की २० वर्ष की आयु के पश्चात् पंचवर्षीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम लागू किया जाए, जिसके लिए चार प्रकार के कर्मकौशलों में से किसी भी एक कर्मकौशल में प्रवेश हेतु निर्धारित पात्रता सिद्ध करने वाले विद्यार्थी को प्रशिक्षण हेतु प्रवेश दिया जाए, ताकि शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाया जा सके। रोजगार के चार ही क्षेत्र होते हैं- कृषिकर्म, वाणिज्यकर्म, राज्यकर्म, नेतृत्वकर्म। इन चार में से किसी भी एक कर्म के कौशल का प्रशिक्षण निःशुल्क, अनिवार्य और अबाध रूप से पंचवर्षीय पाठ्यक्रम के माध्यम से सरकार द्वारा सुलभ कराया जाए। यह प्रशिक्षणपाठ्यक्रम पूर्ण होते ही विद्यालय के प्रधानाचार्य अथवा प्रिंसिपल द्वारा सरकार की ओर से प्रत्येक विद्यार्थी को रोजगार का समुचित
साधन सुलभ कराए। यह रोजगार ‘प्रतिपरिवार एक रोजगार’ की न्यायसंगत नीति पर आधारित हो तथा प्रशिक्षित कौशल के अनुरूप विद्यार्थी का पदनियोजन हो एवं तदनुकूल कर्मसम्पदा पर स्वामित्व प्रदान किया जाए।
कुल २५ वर्षीय विद्यार्थीजीवन में सम्पूर्ण शिक्षण-प्रशिक्षण अर्जित करने के पश्चात् प्रत्येक नागरिक को तदनुरूप ही कर्म-पद-सम्पदा पर स्वामित्व का अधिकार प्रतिष्ठित किया जाए। प्रतिपरिवार एक रोजगार के रूप में कृषिभूमि, वाणिज्यिकपूँजी, राजकीयवेतन एवं नेतृत्वभत्ता
में से कोई भी एक रोजगार का साधन निःशुल्क, अनिवार्य एवं अबाध रूप से उपलब्ध कराया जाए। शिक्षा के साथ प्रशिक्षण को जोड़ने से ज्ञान के साथ कर्म का संयोजन हो जाता है। ज्ञान को कर्म में रूपान्तरित किए विना कोई भी प्रतिफल उत्पन्न नहीं होता। प्रतिफल के विना
मानवजीवन समृद्ध और सुखी नहीं हो सकता। अतः सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा को उपरोक्तानुसार रोजगारोन्मुख बनाए, ताकि नागरिकों को बेरोजगारी एवं गरीबी की भयंकर परिस्थितियों से शीघ्र उबारा जा सके। यह सरकार का उत्तरदायित्व भी है कि वह नागरिकों
के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक हितों की रक्षा करे। समुचित कृषिभूमि, समुचित वाणिज्यिकपूँजी, समुचित राजकीयवेतन एवं समुचित नेतृत्वभत्ता की सुलभता सरकार राजकोष द्वारा समानुपातिक बजट के माध्यम से सुलभ करा सकती है, यदि वह २५% शिक्षाबजट,२५% रोजगारबजट , २५% सुविधाबजट,२५% संरक्षणबजट के रूप में सम्पूर्ण राजकोष को प्रतिवर्ष
४ समान भागों में वितरित करने की न्यायशील बजटनीति का पालन करे।
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी चन्द्रसेन शर्मा जी ने कहा कि प्रतीत होता है कि अब तक की सरकारें मनुष्यों के लिए शिक्षा का महत्त्व भी नहीं समझ पाई हैं। इसीलिए उन्होंने जनता को शिक्षित करने सम्बन्धी अपने न्यायोचित कर्तव्य का पालन नहीं किया।
प्रथम २५ वर्ष की आयु तक विद्यालयीन शिक्षा-प्रशिक्षण मानव की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। मानवता के विकास में शिक्षा ही मूल है। अतः कुल राजकोष का २५% भाग न्यायसंगत शिक्षाबजट के रूप में त्वरित एवं शाश्वत रूप से प्रतिष्ठित किया जाए।
शिक्षा के लिए ‘प्रतिव्यक्ति’ की नीति को आधार माना जाए तथा रोजगार के लिए ‘प्रतिपरिवार’ की नीति को आधार माना जाए। मनुष्य के रूप में किसी भी नागरिक को एक व्यक्ति माना जाए, चाहे वह किसी भी लिंग, रंग, जाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय से सम्बन्धित हो। प्रतिव्यक्ति आधार पर सभी नागरिकों को शिक्षासेवाएँ २५ वर्ष की आयु तक लगातार सुलभ कराई जाएँ।
सम्पूर्ण शिक्षण-प्रशिक्षण हेतु प्रत्येक ग्रामपंचायत में २० वर्ष तक की आयु के शिक्षण एवं प्रत्येक जिलापंचायत के स्तर पर प्रशिक्षण सम्बन्धी विद्यालय स्थापित किए जाएँ, ताकि नागरिकों को शिक्षा-प्रशिक्षण की प्राप्ति हेतु बहुत दूर तक आवागमन के कष्ट न भोगने पड़ें।
मोटे-मोटे वजनदार बस्तों से विद्यार्थियों को तुरन्त छुटकारा दिलाया जाए। वर्तमान विद्यालयीन व्यवस्था बच्चों के लिए बोझ बन गयी है।
बच्चों के अपने शरीर के वजन से भी अधिक भारी बस्ता उनके स्कूलिंग सामग्री का हो जाता है। बस्ते के स्थान पर एक इलेक्ट्रानिक डिवाइस को प्रशस्त किया जाए। उस डिवाइस में ही सम्पूर्ण पठन-पाठन एवं लेखन सामग्री सुलभ करायी जाए। कागजी पुस्तकों, कापियों एवं अन्य
सामग्रियों के स्थान पर इलेक्ट्रानिक सामग्रियों का प्रयोग किया जाए। इससे पर्यावरणसंरक्षण में भी सहायता मिलेगी, कागजों की खपत कम होगी। हरे-भरे पेड़ों का कटना रुकेगा।
विद्यालयीन शिक्षा-प्रशिक्षण एवं परीक्षण हेतु एक सक्षम इण्टरनेट एप्लिकेशन सरकार द्वारा विकसित किया जाए। इस स्कूलिंग एप्लिकेशन के द्वारा ही सम्पूर्ण शिक्षण-प्रशिक्षण-परीक्षण की प्रक्रिया सम्पन्न करी जाए। अंकसूची एवं प्रमाणपत्र त्वरित एवं सरल रूप से इसी एप्लिकेशन
के माध्यम से सभी विद्यार्थियों को सुलभ कराए जाएँ। सामान्य शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए आयोजित परीक्षाओं को कम्प्यूटराइज्ड बनाया जाए। उत्तर सबमिट करते ही उसका त्वरित मूल्यांकन कम्प्यूटर द्वारा सम्पन्न हो तथा त्वरित रूप से परीक्षापरिणाम भी घोषित हो।
सम्पूर्ण राष्ट्र में केवल एक ही समान पाठ्यक्रम लागू हो। सभी नागरिकों को मानसिक विकास के लिए आवश्यक शिक्षा हेतु समान अवसर,
सेवा, सुविधा एवं अधिकार प्रदान किया जाए। देश या प्रदेश पर आधारित शिक्षणपद्धति का भेद समाप्त किया जाए।