हरिद्वार,पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य। अभी कुछ दिनों पहले जया किशोरी जी ने मासिक धर्म के विषय में जो अपना व्यक्तब्य दिया है वह बिल्कुल तथ्य हीन, निराधार और हमारे शास्त्रों के विरुद्ध है। पहले तो हमें इस बात को समझाना होगा कि हमारी जो सनातन परम्पराएं हैं बो निराधार नहीं हैं।जो सनातन परम्पराएं हमारी संस्कृति में हैं बो परम्पराओं को हमारे ऋषियों ने बनाई हैं और हमारे सभी ऋषि अधिकतर गृहस्थी भी थे और वैज्ञानिक के साथ साथ उनके अन्दर दूरदर्शिता भी थी। उन्होंने किसी परम्परा को यूं ही बिना आधार के नहीं बना दिया। धार्मिक के साथ साथ वैज्ञानिक कारण भी हुआ करते थे।जब कोई स्त्री मासिक धर्म से होती है तो उसे आर्तव सूतक लगता है और सूतक में धार्मिक कार्यों को करने की बात तो बहुत दूर की है उसे किसी वस्तु को स्पर्श तक नहीं करना चाहिए।आर्तव सूक्तं स्त्रीणां,रजस्तदिह कथ्यते। असंख्य जन्तु संकीर्णा,द्धिसाया मूल कारणम्।। मासिक धर्म में जब स्त्री होती है तब उसे रजस्वला कहा जाता है।उस दूषित रक्त में असंख्य सूक्ष्म कीटाणु होते हैं बो कीटाणु इतने सूक्ष्म होते हैं जिनको देख पाना सम्भव नहीं है।उनका यह तर्क देना कि बच्चा जब गर्भ में होता है वह मां के रक्त से ही सिंचित होता है तो वह बच्चा भी अशुद्ध है सब अशुद्ध हैं यह भी ग़लत है पहली बात तो यह कि वह रक्त दूषित नहीं होता है दूषित रक्त तो निकल जाता है और जब गर्भ में बच्चा होता है तब वह मां के द्वारा खाये हुए भोजन से ही उसकी पुष्टि होती है।मासिक धर्म में वह तीन दिन तक अशुद्ध रहती है शास्त्रों में वर्णित है कि पहले दिन वह चाण्डाली, दूसरे दिन व्रह्मघातिनी, तीसरे दिन रजकी(धोबिन) के समान होती है और चौथे दिन सिर से स्नान करने के उपरांत शुद्ध होती है। प्रथमेऽहनि चाण्डाली, द्वितीये ब्रह्मघातिनी। तृतीये रजकी प्रोक्ता, चतुर्थेहनि शुद्धयति।। चौथे दिन भी वह केवल अपने पति परिवार के लिए भोजन बना सकती है। पूजा पाठ के कार्य को चौथे दिन भी नहीं कर सकती है।दिनत्रयम् शौचस्यात्, या चतुर्थेऽहनि शुद्धयति।पत्यों हि केवल सा,दान पूजासु पंच्चमे ।। पूजा पाठ, धर्म कर्म पांचवें दिन ही करने के योग्य होती है। अतः जया किशोरी जी से मेरा आग्रह है कि निजी स्वार्थ के लिए जनता को भ्रमित न करें।यह बात किसी और ने कही होती तो शायद मैं नहीं बोलता लेकिन यह बात जया किशोरी ने कही जिनको हजारों लाखों लोग देखते सुनते हैं और इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ सकता है लोग भ्रमित हो सकते हैं।आप नियमों कितना मानतीं हैं मुझे इस बात से कोई सरकारी नहीं है जो जैसा करेगा वैसा भरेगा लेकिन आम लोगों को भ्रमित मत करो। मथुरा से भागवत प्रचारिणी समिति के संस्थापक और अध्यक्ष पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य