उत्तराखंड,अंकिता हत्याकांड के बाद निशाने पर है राजस्व पुलिस व्यवस्था विधान सभा अध्यक्ष रितु खंडूरी ने मुख्यमंत्री से की इस व्यवस्था को समाप्त करने की मांग

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उत्तराखंड, अंकिता हत्याकांड के मामले मे आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद अब विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने मुख्यमंत्री से राजस्व की इस व्यवस्था को समाप्त करने की मांग की है अंकिता हत्याकांड के बाद तो राजस्व पुलिस को पूरी तरह से समाप्त करने की मांग भी उत्तराखंड के कोने-कोने से उठने लगी है जिसे लेकर विधानसभा स्पीकर रितु खंडूरी ने भी मुख्यमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा है।अंकिता हत्याकांड में राजस्व पुलिस द्वारा इसकी जांच की गई थी लेकिन जांच पूरी तरह से विवादों के घेरे में रही और 4 दिन तक अंकिता का कुछ पता नहीं लगा पूर्णविराम उधर जांच बाद में रेगुलर पुलिस को सौंपी गई तो चंद घंटों में अंकिता के हत्या की पुष्टि हो गई। इस प्रकरण के बाद राजस्व पुलिस सबके निशाने पर है और इसे पूरी तरह से उत्तराखंड में समाप्त करने की मांग जोर पकड़ने लगी है।विधानसभा अध्यक्ष ने अपने पत्र में लिखा कि गंगा भोगपुर में यदि सामान्य पुलिस बल कार्य कर रहा होता तो निश्चित रूप से प्रदेश की बेटी अंकिता आज हमारे मध्य होती और आम जनता में सरकारी कार्यप्रणाली के प्रति इतना रोष व्याप्त नहीं होता। विधानसभा अध्यक्ष ने तत्काल प्रभाव में राजस्व पुलिस की व्यवस्था को समाप्त कर पुलिस चौकी एवं थाना स्थापित करने का मुख्यमंत्री से आग्रह किया, जिससे भविष्य में इस प्रकार की अप्रिय घटना दुबारा घटित न हो|

उत्तराखंड राज्य का 61 प्रतिशत हिस्सा आज भी ऐसा है, जहां न तो कोई पुलिस थाना है, न कोई पुलिस चौकी और न ही यह इलाका उत्तराखंड पुलिस के क्षेत्राधिकार में आता है। यहां आज भी अंग्रेजों की बनाई वह व्यवस्था जारी है, जहां पुलिस का काम रेवेन्यू डिपार्टमेंट के कर्मचारी और अधिकारी ही करते हैं। इस व्यवस्था को ‘राजस्व पुलिस’ कहा जाता है।

राजस्व पुलिस का मतलब है कि पटवारी, लेखपाल, कानूनगो और नायब तहसीलदार जैसे कर्मचारी और अधिकारी ही यहां रेवेन्यू वसूली के साथ-साथ पुलिस का काम भी करते हैं। कोई अपराध होने पर इन्हीं लोगों को एफआईआर भी लिखनी होती है, मामले की जांच-पड़ताल भी करनी होती है और अपराधियों की गिरफ्तारी भी इन्हीं के जिम्मे है। जबकि इनमें से किसी भी काम को करने के लिए इनके पास न तो कोई संसाधन होते हैं और न ही इन्हें इसकी ट्रेनिंग मिलती है।

साल 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस व्यवस्था को समाप्त करने के आदेश दिए थे। तब एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने आदेश दिए थे कि छह महीने के भीतर पूरे प्रदेश से राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त की जाए और सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में शामिल किया जाए। लेकिन, इस आदेश के ढाई साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

राजस्व पुलिस की व्यवस्था को ख़त्म करने की मांग काफी समय से होती रही है। साल 2013 में केदारनाथ में आपदा आई थी तो प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा था कि ‘यदि प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में रेगुलर पुलिस की व्यवस्था होती तो आपदा से होने वाला नुकसान काफी कम हो सकता था क्योंकि पुलिस के जवान आपात स्थितियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित भी होते हैं और व्यवस्था बनाने में भी पुलिस की अहम भूमिका होती है जो राजस्व पुलिस वाली व्यवस्था में संभव नहीं।’

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